परकाजहि देह कों धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ। निधि-नीर सुधा के समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ। घनआनंद जीवन-दायक हौ कछू मेरियौ पीर हियें परसौ। कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मो अँसुवानहिं लै बरसौ।।
हिंदी समय में घनानंद की रचनाएँ